Nashik Wind Mills
रात भर सर्द हवा चलती रही
रात भर हमने अलाव तापा
मैंने माज़्ही से कई खुश्क सी शाखें काटी
तुमने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े
मैंने जेबों से निकली सभी सूखी नज्में
तुमने भी हातों से मुरझाये हुए ख़त खोले
अपनी इन आँखों से मैंने कई मांजे तोड़े
और हातों से कई बासी लकीरें फेंकी
तुमने पलकों पे नमी सूख गयी थी, सो गिरा दी
रात भर जो मिला उगते बदन पर हमको
काट के डाल दिया जलते अलावों मै उसे
रात भर फूकों से हर लौ को जलाये रखा
और दो जिस्मों के इंधन को जलाये रखा
रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने
- गुलज़ार
Nashik Wind Mills
Tarun Chandel
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