
कौन जाये ज़ौक़ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर!
लाल किले का कुछ एक खास ही रिश्ता है दिल्ली की गलियों से.
भीड़ भाड़ भरी पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों के इक सिरे पर खड़ा ये लाल क़िला चुप छाप देखता रेहता है दिल्ली मैं आते बदलाव को.
साथ ही ये मुझ दिल्ली वाले को ये एहसास भी करवाता है की कुछ अच्छी चीज़ें दिल्ली मे आज भी वैसी ही हैं जैसी मेरे बचपन मे थी.
मुझे याद है की स्कूल से पिकनिक के लिये हम लाल क़िला जाते थे,
पुरानी दिल्ली की गलियाँ, उन मैं वो हलवाई, उनकी जलेबियाँ, उनके पराठे...
और वो सब खाने के बाद लाल किले के खुले मैदानो मैं भागना, कूदना और दोस्तों के साथ खेलना.
लाल क़िला एक बूढ़े दादा जी की तरह हमेशा अपनी बाहें खोले हमारा स्वागत करता और
खेल कर थकने के बाद अपने घने पेड़ो और नर्म घास पर सोने भी देता.
आज भी लाल क़िला दिल्ली की संकरी गलियों को तकता वहीं खड़ा है...
इन संकरी गलियों के परे की दिली को बदलते देख रहा है...
आज भी अपने खुले मैदानो मे बच्चो को खेलते देख मुस्करा रहा है...
और कुछ पुरानी मज़ेदार कहानिया सुना रहा है...

Red Fort, Delhi

Red Fort, Delhi

Entrance of the Red Fort, Delhi

Naqqar Khana of the Red Fort

Takth-e-Taus, Red Fort

Diwan-i-Khas, Red Fort

Diwan-i-Khas, Red Fort

Garden of Red Fort
Tarun Chandel
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