
युहीं कहीं इन्ही किन्ही रास्तों पर चलने का मन है
ऐसे कैसे जैसे तैसे ऊंचाईयों पर चढ़ छलांग लगा उड़ने का मन है
कभी तभी नहीं पर अभी की प्यास आने वाले मेघों के रस से बुझाने का मन है
जाने अन्जाने मे आने वाले अँधेरे के आगे आते उजाले मे घुलने का मन है
तरुण चंदेल
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