Marine Drive Mumbai
सपनों से भरी आँखों का शहर:
हमको उठना तो मुंह अँधेरे था
लेकिन एक ख्वाब हमको घेरे था
सबका ख़ुशी से फासला एक कदम है
हर घर में बस एक ही कमरा कम है
गिन गिन के सिक्के हाथ मेरा खुरदरा हुआ
जाती रही वो लव्जों की नरमी बुरा हुआ
ऊँची इमारतों से घिर आसमान मेरा कम हुआ
कुछ लोगों की वजह से मेरे हिस्से का सूरज भी कम हुआ
- जावेद अख्तर
कुछ अजीब सा ही ये शहर है
सब के सर यहाँ चढ़ा जैसे कोई ज़हर है
पर फिर भी सपनों से भरी आँखों का ये शहर है
सपनों से भरी आँखों का शहर
Marine Drive Mumbai
Tarun Chandel
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2 comments:
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